
संवेदनहीनता ऐसी की एक सप्ताह से ना जांच, ना कमेटी और ना कार्रवाई, फिर खानापूर्ति के लिये बनाई कमेटी
मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव के आदेशों की अनदेखी
पावर डेस्क. जयपुर
प्रदेश में बिजली करंट से मौतों का सिलसिला अभी थमा नहीं है। जयपुर विद्युत वितरण निगम (जयपुर डिस्कॉम) के जयपुर शहर वृत के खंड-सात में ग्रिड सब-स्टेशन (जीएसएस) का मेंटेनेंस करने के दौरान एक ठेकाकर्मी बिजली करंट से झुलस गया। ठेकाकर्मी सात दिन तक अस्पताल में जीवन व मृत्यु की लड़ाई लड़ता रहा और एक सप्ताह पहले यानि 5 फरवरी को ठेकाकर्मी पूरण सिंह की मौत हो गई। विभाग के अफसरों व ठेकेदारों के साथ ही कर्मचारी यूनियनों ने भी मामले को दबा दिया। गठजोड़ ऐसी की मीडिया तक भी मामला नहीं पहुंचा। प्रबंधन व सरकार की संवेदनहीनता ऐसी है कि एक सप्ताह में ना जांच करवाई, ना कोई कमेटी बनाई और ना ही किसी के खिलाफ कार्रवाई की। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि ठेकेदार व जेईएन-एईएन ने कर्मचारी के मौत की जिम्मेदारी लेने के बजाए उसी की लापरवाही को कारण बताया दिया। अब सवाल यह उठता है कि जब ठेकाकर्मी खुद ही लाइन पर काम करने लग जाता है तो फिर ठेकेदार के सुपरवाइजर व जेईएन-एईएन की मौजूदगी का औचित्य ही क्या रह जाता है। जयपुर विद्युत वितरण निगम के नवनियुक्त प्रबंध निदेशक नवीन अरोड़ा तक भी सूचना पहुंची, लेकिन उन्होने जांच करवाने के बजाए इंजीनियरों की बात को ही सत्य मान लिया। इस दुर्घटना वाले खंड सात के एक्सईएन डीके पुंडीर, एईएन अशोक गुप्ता व जेईएन पर लगे है। जेईएन व फर्म मैसर्स मनोज इलेक्ट्रीकल ( मदन लाल) की दुर्घटना की जिम्मेदारी बताई जा रही है। हालांकि इस मामले में एक्सईएन शहर व्रत प्रथम कैलाश चौधरी की कमेटी बनाई है।
मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव की भी परवाह नहीं :
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों विद्युत सिस्टम से हो रही दुर्घटनाओं पर संवेदनशीलता दिखाते हुए चिंता जाहिर की थी तथा दुर्घटनाएं रोकने के निर्देश दिए थे। इसके बाद मुख्य सचिव निरंजन आर्य ने भी बैठक लेकर निर्देश दिए थे लेकिन हालात नहीं सुधरे। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि विद्युत निगम के अभियंताओं व अधिकारियों को मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव के आदेशों व निर्देशों की भी परवाह नहीं है।
छह महीने पहले गर्भवती महिला की मौत पर भी संवेदनहीनता:
शहर वृत के खंड सात के एचटीएम शाखा में ही करीब छह महीने पहले भी विद्युत तार के टूटने के कारण करंट से गर्भवती महिला की मौत हुई थी। उस समय डिस्कॉम के अभियंताओं ने तीन खंभा दूर पार्क में काम कर रहे जेडीए ठेकेदार को दुर्घटना का जिम्मेदार बता कर खुद का बचा लिया। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उस समय बिजली विभाग ने मृतका के परिजनों को पांच लाख रुपए की सहायता राशि भी दी थी। लेकिन एक बात तो मृतका के पति ने मुआवजा लेने से इंकार कर दिया था। अब सवाल यह उठता है कि जब विद्युत निगम के एईएन-एईएन जिम्मेदार ही नहीं थे तो मुआवजा देकर डिस्कॉम को आर्थिक नुकसान क्यो पहुंचाया। कर्मचारियों का कहना है कि पहले ही आरोपियों पर कार्रवाई हो जाती तो यह दुर्घटनाएं नहीं होती।

