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Morgan Howen

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कोरोना कोहराम का जिम्मेदार ‘निज़ामुद्दीन तबलीग़ी जमात मरकज़’ कर रहा था मुस्लिम मजहब का प्रचार?

 

 

 

लाइफ डेस्क।

दिल्ली का निज़ामुद्दीन इलाक़ा कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी के इस दौर में चर्चा में आ गया है। मार्च में यहां के तबलीग़ जमात के मरकज़ में एक धार्मिक आयोजन हुआ। इसमें देश के कई हिस्सों व विदेशी लोग शामिल थे। यहां लोगों के जमा होने का पता चला तब पुलिस ने कार्रवाई की और लोगों को यहां से बाहर निकाला। यहां आए बहुत से लोगों की कोरोना वायरस टेस्ट पॉज़ीटिव मिले हैं। इससे  भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में एकाएक उछाल आ गया। इसने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि दिल्ली में हुए इस आयोजन से भारत के 20 से अधिक राज्यों में कोरोना वायरस का ख़तरा बढ़ गया है।

 

जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए 25 मार्च से 21 दिनों की लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है। लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर पुलिस ड्रोन से नज़र रख रही थी। वहीं तबलीग़ जमात का कहना है कि जनता कर्फ़्यू के एलान के बाद धार्मिक कार्यक्रम रोक दिया था। लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के कारण लोग वापस नहीं जा सके।

यह है तबलीग़ी जमात

तबलीग़ी जमात का जन्म भारत में 1926-27 के दौरान हुआ। एक इस्लामी स्कॉलर मौलाना मुहम्मद इलियास ने इस काम की बुनियाद रखी थी। इलियास दिल्ली से सटे मेवात में लोगों को मज़हबी शिक्षा देने की शुरुआत की। 1940 के दशक तक जमात का कामकाज अविभाजित भारत तक ही सीमित था, बाद में इसकी शाखाएं पूरी दुनिया में फैल गया। तबलीग़ी जमात की पहली मीटिंग भारत में 1941 में हुई थी। इसमें 25,000 लोग शामिल हुए थे। जमात का सबसे बड़ा जलसा हर साल बांग्लादेश में होता है, जबकि पाकिस्तान के रायविंड में एक सालाना कार्यक्रम होता है। इसमें दुनियाभर के लाखों मुसलमान शामिल होते हैं। ये विश्व की सबसे बड़ी मुसलमानों की संस्था है, इसके सेंटर 140 देशों में हैं। भारत में सभी बड़े शहरों में इसका मरकज़ है यानी केंद्र है। इन मरकज़ों में साल भर इज़्तेमा (धार्मिक शिक्षा के लिए लोगों का इकट्ठा होना) चलते रहते है।

तबलीग़ी जमात का अगर शाब्दिक अर्थ निकालें तो इसका अर्थ होता है, आस्था और विश्वास को लोगों के बीच फैलाने वाला समूह। इन लोगों का मक़सद आम मुसलमानों तक पहुंचना और उनके विश्वास-आस्था को पुनर्जिवित करना है। ख़ासकर आयोजनों, पोशाक और व्यक्तिगत व्यवहार के मामले में।

तबलीग़ी जमात छह शब्दों पर टिका हुआ है।

कलमा – कलमा पढ़ना

सलात – पांचों वक़्त की नमाज़ को पढ़ना

इल्म – इस्लामी शिक्षा

इक़राम ए मुस्लिम – मुस्लिम भाइयों का सम्मान करना

इख़्लास ए निय्यत – इरादों में ईमानदारी

दावत ओ तबलीग़ – प्रचार करना

जमात के आयोजन में क्या होता है?

जमात का काम सुबह से ही शुरू हो जाता है। सुबह होने के साथ ही जमात को कुछ और छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक समूह में आठ से दस लोग होते हैं। इन लोगों का चुनाव जमात के सबसे बड़े शख़्स द्वारा किया जाता है। इसके बाद प्रत्येक ग्रुप को एक मुकम्मल जगह जाने का आदेश दिया जाता है। इस जगह का निर्धारण इस बात पर होता है कि उस ग्रुप के प्रत्येक सदस्य ने इस काम के लिए कितने पैसे रख रखे हैं। इसके बाद शाम के वक़्त जो नए लोग जमात में शामिल होते हैं उनके लिए इस्लाम पर चर्चा होती है। सूरज छिप जाने के बाद क़ुरान का पाठ किया जाता है और मोहम्मद साहब के आदर्शों को बताया जाता है।

निज़ामुद्दीन मरकज़ के मरीज़ों की बाढ़ से कैसे निपटेगा देश  

निज़ामुद्दीन के आलमी मरकज़ की बिल्डिंग से 2346 लोगों को निकाला गया है, इनमें खांसी, बुखार जैसे लक्षणों से पीड़ित 536 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और बाकी 1810 लोगों को क्वारंटीन में रखा गया है। आशंका है कि यहां से निकले कई लोग ट्रैक ही नहीं हो पाएंगे, जिससे कम्युनिटी स्प्रेड होने का ख़तरा है. इनसे कोरोना कितना फैला है, ये इस हफ्ते में पता चलेगा।

तबलीगी जमात के मौलाना का नया संदेशमैंने खुद को क्वारंटाइन किया, आप भी डॉक्टरी सलाह मानें

तबलीगी जमात के लोगों को ‘मस्जिद से अच्छी मौत कहीं नहीं’ का पाठ पढ़ाने वाले मौलाना साद अब खुद कोरोना वायरस से डर गए हैं। मौलाना साद का एक नया ऑडियो संदेश आया है। इसमें साद ने खुद कहा कि वह फिलहाल दिल्ली में डॉक्टरी सलाह के बाद आइसोलेशन में हैं। डॉक्टर के पास जाना शरियत के खिलाफ नहीं है।

 

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